सोने की अपनी नाँव है चाँदी का बाकी पानी है
सोने की अपनी नाँव है
चाँदी का बाकी पानी है,
तमाम खुशी से बेहतर
अपने गम की कहानी है...
रह गया हूँ ज़माने से दूर क्योंकि
इसकी चाल धीमी है
अपनी रफ़्तार तूफ़ानी है...
कैसे अलग हूँ उन लोगों से
जिनसे आज मैं हार गया
अपनी आदत सच्चाई है,उनकी फ़ितरत बे ईमानी है...
मेरे लिये तो ऎ यारों
बाद में आता है कोई मुकाम जीतना
सब्से पहले दिल जीतना,और दोस्ती निभानी है...
आँसू की बूँद ना कहो इसे तुम
पराया दर्द महसूस करने का जज़्बा है
मेरी आँखों में ठहरा हुआ जो पानी है...
ऐश और अय्याशी में खोयी नही है
जज़्बातों के आँगन में सँवरी है
तुम ही कहो किसकी बेहतर जवानी है...
क्या परखेगा ज़माना मेरे हौसले को
अब तो मुझे इस तमाम
ज़माने की हिम्मत आज़मानी है...
इन मामूली मुश्किलातों से भला कैसे
गिर जायेंगे ये कंधे मेरे
जिनको इस जहाँ की ज़िम्मेदारी उठानी है...
औरों को हरायेंगे एक रोज़ मगर
जीत के मायनो को समझना है पहले
और खुद से जीतने की आदत बनानी है...
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